हिमाचल प्रदेश में सरकार की ढुलमुल नितियों की वजह से माईक्रो हाईडल प्रोजेक्ट के विकास में बाधा उत्पन होने लगी
विजयेन्दर शर्मा की रिर्पोट
हिमाचल प्रदेश में सरकार की ढुलमुल नितियों की वजह से माईक्रो हाईडल प्रोजेक्ट के विकास में बाधा उत्पन होने लगी है। मिली जानकारी के मुताबिक पिछले बारह सालों में प्रदेश में हिम ऊर्र्जा ने करीब 600 छोटी पन विद्युत परियोजनाओं को स्वीकरिति दी। जबकि मात्र 26 ही इनमें अस्तिव में आकर उत्पादन शुरू कर पायीं। बाकि सब कागजों में ही चल रहा है। प्रदेश सरकार की नितियों की वजह से पांच मेगावाट की क्षमता वाली परियोजना प्रदेश के लोगों को ही अलाट हो सकती है। इसी लिहाज से करीब सात सौ मेगावाट विद्युत क्षमता का दोहन प्रदेश में होना है। लेकिन पिछले बारह सालों में जिन लोगों को जो यह प्रोजेक्ट मंजूर हुये वह उनका निर्माण ही नहीं करा पाये। इसके पीछे धन की कमी व कागजी प्रक्रिया बाधक रही है। तय मापदंडो के मुताबिक परियोजना स्थापित करने से पहले सिंचाई जंगलात लोक निर्माण मत्सय महकमे के साथ स्थानिय पंचायत से अनापत्ति प्रमाण लेना होता है। जो आसान काम नहीं है। इन दिनों एक परियोजना पर करीब आठ दस करोड रूपये की लागत आ रही है। एक आम आदमी जिसे राजनिति के दबदबे में भले ही परियोजना अलाट हो जाती है लेकिन वह इतना पैसा जुटा नहीं पाता। पिछले दिनों प्रदेश सरकार ने कांगडा को आप्रेटिव बैंक से वित्तिय सहयोग देने को कहा था जिसे नाबार्ड ने नहीं माना। इसमें दूसरा तरीका प्रदेश के बाहर के लोगों को इसकी हिस्सेदारी बेचने का था। जिसे अब मान लिया गया व अब प्रदेश का बाशिंदा जिसे यह प्रोजेक्ट मंजूर होता है वहअपनी 49 प्रतिशत की भागीदारी में बाहर के लोगों का निवेश करा सकता है। लेकिन अब तक कोई भी इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा पाया है। इसमें एक बडी बात यह भी है कि सरकार की ओर कोई कानून ही नहीं बनाया गया है कि इसे कैसे रद् भी किया जाये। माना जाता है कि अगर सरकार की ओर से इसके निर्माण के लिये कोई समय सीमा तय की जाती तो इन्हे लेकर निर्माण में दिलचस्पी न दिखाने वाले लोगों को बाहर कर नये लोगों को आगे लाया जाता। ताकि इन्हें सिरे चढाया जाता। कांगडा जिला में तो यह प्रोजक्ट स्थानीय लोगों के विरोध को झेल रहे हैं। आज यह प्रोजेक्ट जहां अस्तित्व में आने हैं। वहां स्थानीय लोगों की बर्तनदारियां हैं। प्राकरितक जल स्त्रोत तक प्रभावित हो रहे हैं। पेयजल व सिंचाई परियोजना तक प्रभावित हो रही हैं। लोागेंा का आरेाप है कि अगर यह प्रोजेक्ट लगे तो उनके पारंपरिक जल स्त्रोत कूहलें आदि प्रभावित होंगी। पानी दूषित हो जायेगा। प्रदेश सरकार इसमें कोई कारगर निति बनानी चाहिये ताकि प्रदेश व प्रदेश के लोगों का इससे भला हो सके।




