सेंट्रल पूल को तुरंत प्रभाव से रद्द करने के आदेश


धर्मशाला/ प्रदेश सरकार ने कांगड़ा में अधिग्रहित मंदिरों के चढ़ावे के हिस्से से विवादित सेंट्रल पूल को तुरंत प्रभाव से रद्द करने के आदेश दिए हैं। इसके अलावा पिछले 20 साल का सारा रिकॉर्ड तलब करने के आदेश दिए हैं। मुख्य आयुक्त मंदिर की ओर से भेजे गए पत्र में मंदिर अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत मंदिर आयुक्त कांगड़ा को तत्काल प्रभाव से सेंट्रल पूल रद्द करने और 1990 से सेंट्रल पूल के तहत तथाकथित कर्मचारियों की नियुक्ति, पर्दो, फर्नीचर और वाहनों की की खरीद सहित अन्य खर्चो का पूरा ब्योरा भेजने को कहा है। सरकार ने मंदिर आयुक्त से पूछा है कि सेंट्रल पूल के तहत कितने वाहन खरीदे गए। उनके नंबर, श्रेणी और किन—किन लोगों ने इसका प्रयोग किया और सेंट्रल पूल में कितने कर्मचारी नियुक्त किए।1990 में किया गया था गठन वर्ष 1990 में कांगड़ा के अधिग्रहित मंदिरों के चढ़ावे में से तत्कालीन जिलाधीश ने एक सेंट्रल पूल बनाया था। वर्ष 2007 में जब मंदिर अधिनियम में संशोधन किया गया तो जिलाधीश एवं मंदिर आयुक्त की शक्तियां कम कर दी गई। उनके ऊपर मुख्य मंदिर आयुक्त को बिठाया गया। इस संशोधन के बाद मंदिर आयुक्त की शक्तियां मुख्य आयुक्त को दे दी गई, लेकिन सेंट्रल पूल फिर भी चलता रहा जबकि मंदिर अधिनियम के प्रावधानों के अंर्तगत मुख्य आयुक्त मंदिर से इसकी स्वीकृति लेना आवश्यक है। मंदिर अधिनियम 1984 के तहत न तो उस समय सेंट्रल पूल का प्रावधान था और न ही 2007 के संशोधन में। हालांकि मंदिरों के लिए विशेष फंड बनाया जा सकता है जबकि सेंेट्रल पूल बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। मंदिर आयुक्त ने इसका निर्माण कर मंदिर अधिनियम 1984 के प्रावधानों की सरेआम धज्जियां उड़ाई। इस संबंध में कड़ा संज्ञान लेते हुए वर्ष 2010 में ओएसडी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी और भाषा एवं संस्कृति विभाग की ऑडिट रिपरेट में भी वित्तिय अनियमितताओं खुलासा हुआ। सेंट्रल पूल को खत्म न करके उसका दुरुपयोग होता रहा है। जिलाधीश ने अपनी शक्तियां अतिरिक्त जिलाधीश को देकर सेंट्रल पूल का प्रभारी बना दिया। अंत में सरकार को इस संबंध में कड़ा संज्ञान लेना पड़ा और सेंट्रल पूल खत्म करने के आदेश देने पड़े। हालांकि पत्र को भेजे हुए काफी समय हो गया है, लेकिन मंदिर आयुक्त की ओर से अभी सरकार के पत्र का जवाब नहीं मिला है। भाषा एवं संस्कृति विभाग के ओएसडी प्रेम प्रशाद पंडित ने मंदिर आयुक्त को पत्र भेजने की पुष्टि की है, लेकिन ज्यादा जानकारी देने से इनकार कर दिया।

पांच शक्तिपीठों समेत कई बड़े मंदिर थे शामिल
हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास अधिनियम 1984 के तहत जिला कांगड़ा के शक्तिपीठों सहित चिंतपूर्णी, नयनादेवी, त्रिलोकपुर जैसे बड़े मंदिरों में चढ़ने वाले चढ़ावे के लिए सरकार की ओर से गठित सेंट्रल फंड के खर्चे के लिए तय निर्देशिका तैयार करने का जिम्मा मंदिर कमेटी को सौंपा गया था। विधायक सुरेश भारद्वाज ने विधानसभा में मंदिरों के चढ़ावे और उसके खर्च के संबंध में प्रश्न पूछा था। इसके प्रत्युत्तर में मुख्यमंत्री ने इस पर पुनर्विचार और दिशानिर्देश तय करने के लिए मंदिर कमेटी का गठन किया था। मंदिर कमेटी ने प्रदेश भर के मंदिरों के पुजारियों सहित अधिकारियों से मंदिर व्यवस्था के संबंध में जानकारियां जुटाकर सुझावों सहित रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। सेंट्रल फंड खर्च करने के लिए उन्होंने सरकारी विभागों की ओर से अपनाए जा रहे मापदंडों को अपनाने की सलाह देते हुए अधिकृत अधिकारी को ही वित्तीय शक्तियां देने का सुझाव दिया था।

Posted by BIJENDER SHARMA on 5:52 PM. Filed under , , , . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0

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