हिमाचल के नूरपुर में लगता है सावन के महीने में नागनी मेला



सर्पदंद्गा के भय से मुक्त कराती है नागिनी माता
(दो मास तक चलने वाला प्रदेद्गा का एक मात्र मेला)

विजयेन्दर द्रार्मा
ज्वालामुखी ३१ जुलाई ...हिमाचल के देवी देवताओं की अपनी अलग कहानी है; यहां हर गांव में अपना एक देवता है; कांगड़ा जिला की देव भूमि, वीर भूमि एवं ऋच्चि-मुनियों की तपोस्थली पर वर्च्च भर मनाए जाने वाले असंखय मेलों की श्रृंखला में सबसे लम्बे समय अर्थात दो मास तक मनाए जाने वाला प्रदेद्गा का एक मात्र 'मेला नागनी माता' है जोकि हर वर्च्च श्रावण एवं भाद्रपद मास के प्रत्येक द्यानिवार को नागनी माता के मन्दिर कोढ ी-टीका में परम्परागत ढंग एवं हर्च्चोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोगों की मान्यता है कि मेले में नागनी माता का आद्गाीर्वाद प्राप्त करने से सांप इत्यादि विच्चैले कीड ों के दंद्गा का भय नहीं रहता है।
नागनी माता का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मन्दिर नूरपुर से लगभग १० किलोमीटर दूर मण्डी-पठानकोट राच्च्ट्रीय उच्च मार्ग पर गांव भडवार के समीप कोढ ी-टीका गांव में स्थित है। नागनी माता जोकि मनसा माता का रूप माना जाता है, के नाम पर हर वर्च्च श्रावण एवं भाद्रपद मास में मेले लगते हैं। इन दोनों मास के दौरान इस वर्च्च पड ने वाले कुल नौ द्यानिवार मेले १७ जुलाई से ११ सितम्बर, २०१० तक मनाए जा रहे है और इन मेलों की श्रृंखला में ३१ जुलाई, २०१० द्यानिवार को जि ला स्तरीय मेले के रूप में मनाया जा रहा है, जिसमें हजारों की संखया में श्रद्धालु कांगड ा जिला के अलावा पठानकोट क्षेत्र से आकर नागनी माता का आद्गाीर्वाद प्राप्त कर पुण्य कमाते हैं।इस मंदिर के इतिहास बारे कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं और इस मन्दिर की विद्गोच्चता है कि इसके पुजारी राजपूत घराने से संबंध रखते हैं। इस मंदिर को लेकर जो भी दंत कथाएं हो, सत्यता जो भी हो, परंतु लोग श्रद्धाभाव से जहरीले जीवों, कीटों तथा सर्पदंद्गा के इलाज के लिए आज भी बड़ी संखया में इस मन्दिर में पहुंचते हैं।

मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित एक दंतकथा के अनुसार वर्तमान में कोढ ी टीका में स्थित माता नागनी मन्दिर, जोकि कालान्तर में घने जंगलों से घिरा हुआ स्थान हुआ करता था। बताया जाता है कि इस जंगल में कोढ से ग्रसित एक वृद्ध रहा करता था और कुच्च्ठ रोग से मुक्ति के लिए भगवान से निरंतर प्रार्थना करता था। उसकी साधना सफल होने पर उसे नागिनी माता के दर्द्गान हुए तथा उसे नाले में दूध की धारा बहती दिखाई दी। स्वप्न टूटने पर उसने दूध की धारा वास्तविक रूप में बहती देखी जोकि वर्तमान में मन्दिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता के निर्देद्गाानुसार उसने अपने द्यारीर पर मिट्‌टी सहित दूध का लेप किया और वह कोढ मुक्त हो गया। आज भी यह परिवार माता की सेवा करता है और माना जाता है कि उसके परिवार को माता की दिव्य द्याक्तियां प्राप्त हैं।

इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार एक नामी सपेरे ने मंदिर में आकर धोखे से नागिनी माता को अपने पिटारे में डालकर बंदी बना लिया। नागिनी माता ने क्षेत्रीय राजा को दर्द्गान देकर अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना की। जब वह सपेरा कंडवाल के पास आकर जैसे ही इस स्थल पर रूका तो राजा ने नागिनी माता को सपेरे से मुक्त करवाया। तब से इस स्थल को विच्चमुक्त होने की मान्यता मिली और सर्पदंद्गा से पीडि त लोग अपने इलाज के लिए यहां आने लगे। इसी तरह कुछ अन्य कथाएं भी इस मंदिर की मान्यता को लेकर प्रचलित हैं। मन्दिर के पुजारी प्रेम सिंह के अनुसार माता कई बार सुनहरी रंग के सर्परूप में मन्दिर परिसर में दर्द्गान देती है, जिसे देखकर बड े आनन्द की अनुभूति महसूस होती है और वह क्षण वर्च्चों तक चिरस्मरणीय रहते हैं।जिला स्तरीय मेला घोच्चित होने के उपरान्त उपमण्डलाधिकारी(ना) नूरपुर की अध्यक्षता में मन्दिर प्रबन्धन समिति का गठन किया गया है, जिसके माध्यम से मन्दिर के विद्गााल भवन के निर्माण के अतिरिक्त श्रद्धालुओं एवं सांप से पीड़ित व्यक्तियों के ठहरने हेतू तीन धर्मद्गाालाएं, एक यज्ञद्गााला, एक भण्डार कक्ष तथा एक सामुदायिक भवन का निर्माण करवाया गया है। महिलाओं के लिये अलग से स्नानागार निर्मित किया गया है। राजमार्ग से मन्दिर परिसर तक सड क एवं रोद्गानी का प्रबन्ध किया गया है तथा वाहनों के लिये पार्किंग स्थल बनाये गये हैं।

श्रद्धालु माता के मन्दिर की मिट्‌टी जिसे द्याक्कर कहा जाता है, को बड ी श्रद्धा व विद्गवास के साथ घर ले जाते हैं ताकि घर में सांप तथा अन्य विच्चैले जन्तुओं का भय न रहे। इसके अलावा इस मिट्‌टी का उपयोग चर्म रोग के लिए भी किया जाता है। मेले के दौरान श्रद्धालु नागणी माता को दूध, खीर, फल इत्यादि व्यंजन अर्पित करके पूजा अराधना करते है। आदिकाल से यह मेला बदलते परिवेद्गा के बावजूद भी लोगों की श्रद्धा एवं आस्था का परिचायक रहा है, जिसमें प्रदेद्गा की समृद्ध संस्कृति एवं सभ्यता की झलक साक्षात देखने को मिलती है।

Posted by BIJENDER SHARMA on 1:21 AM. Filed under , , . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0

2 comments for हिमाचल के नूरपुर में लगता है सावन के महीने में नागनी मेला

  1. लोकमान्यतायें हमारे अन्तर्मन में बहुत आस्था के साथ समायी रहती हैं । उनकी अपनी किंवदन्तीयां हैं कितनी सच या कितनी काल्पनिक कोई नहीं जानता। आपका लेख बहुत अच्छा लगा। भाषागत अशुद्धियां खटकती हैं।

  2. Jai Mata Di

    My Place Nagni Bhadwar (Awesome place)

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